🌸 मुसीबत का सामना 🌸
एक गाँव में एक बढ़ई रहता था। वह शरीर और दिमाग से बहुत मजबूत था।एक दिन उसे पास के गाँव के एक अमीर आदमी ने फर्नीचर बनवाने के लिए अच्छे मेहनताने पर अपने घर बुलाया।
वहाँ के काम को खत्म करते समय तक शाम ने धरा को अपने बाहुपाश में ले लिया। उसने काम के मिले पैसों की एक पोटली बनाकर बगल मे दबा ली ताकि किसी लुटेरे को वह थैली दिखाई न दे और ठंड से बचने के लिए उसने कंबल ओढ़ लिया।
सुनसान रास्ते से वह चुपचाप अपने घर की और रवाना हुआ। कुछ दूर जाने के बाद अचानक उसे एक डाकू ने रोक लिया।डाकू शरीर से तो बढ़ई से कमजोर ही था लेकिन उसकी शारीरिक कमजोरी को उसकी बंदूक ने ढक रखा था जिसके बल पर वह बढ़ई के सामने आ खड़ा हुआ।
अब बढ़ई ने उसे सामने देखा तो उसके हाथों में बंदूक देखकर वह भयातुर हो गया। लुटेरे ने उसकी मानसिक दशा का आंकलन कर कहा बोला-"जो कुछ भी तुम्हारे पास है सभी मुझे दे दो नहीं तो मैं तुम्हें गोली मार दूँगा।"
यह सुनकर अन्य किसी की अपेक्षा न रखते हुए भयभीत बढ़ई ने पोटली उस लुटेरे को थमा दी और बोला- "ठीक है यह रुपये तुम रख लो मगर मैं घर पहुँच कर अपनी बीवी को क्या कहूंगा? वो तो यही समझेगी कि मैने पैसे जुए में या किसी व्यसन में उड़ा दिए होंगे इसलिए तुम एक काम करो, अपनी बंदूक की गोली से मेरी टोपी मे एक छेद कर दो ताकि मेरी बीवी को लूट का यकीन हो जाए।"
लुटेरे ने बड़ी शान से बंदूक से गोली चलाकर टोपी में छेद कर दिया। अब लुटेरा जाने लगा तो बढ़ई पुनः बोला- "एक काम और कर दो जिससे बीवी को यकीन हो जाए कि लुटेरों के गैंग ने मिलकर मुझे लूटा है । वरना मेरी बीवी मुझे कायर ही समझेगी। तुम इस कंबल मे भी चार- पाँच छेद कर दो।" अपने कृत्य पर मन ही मन प्रसन्न होते हुए लुटेरे ने खुशी खुशी कंबल में भी कई गोलियाँ चलाकर छेद कर दिए।
इसके बाद बढ़ई ने अपना कोट भी निकाल दिया और बोला- "इसमें भी एक-दो छेद कर दो ताकि सभी गाँव वालों को यकीन हो जाए कि मैंने बहुत संघर्ष किया था।"
इस पर लुटेरा बोला-" बहुत हो गया, बस कर अब। इस बंदूक में गोलियां भी खत्म हो गई हैं।'
यह सुनते ही बढ़ई आगे बढ़ा और लुटेरे को दबोच लिया और बोला, "मैं भी तो यही चाहता था।तुम्हारी ताकत सिर्फ ये बंदूक थी। अब ये भी खाली है। अब तुम्हारा कोई जोर मुझ पर नहीं चल सकता है।चुपचाप मेरी पोटली मुझे वापस दे दे वरना .....!"
यह सुनते ही लुटेरे की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई और कोई रास्ता न देख उसने तुरंत ही पोटली बढ़ई को वापिस दे दी और अपनी जान बचाकर वहाँ से भागा।
आज बढ़ई की ताकत तब काम आई जब उसने अपनी अक्ल का, अपने विवेक का सही ढंग से उपयोग किया।
इसलिए कहते है कि मुश्किल हालात मे अपनी अक्ल का ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए तभी आप मुसीबतों से आसानी से निकल सकते हो।अपने विवेक को जीवंत रखिए।हमारी विवेकहीनता हमारी दुर्बलता का कारण बन जाती है जबकि हम अपने विवेक से विषम परिस्थितियों के हर चक्रव्यूह को भेद सकते हैं।
विवेक का आलोक हमारी सफलता के द्वार के दर्शन हमें कराता है। पवनपुत्र हनुमान का जीवन जाग्रत विवेक का सशक्त उदाहरण है। माता सीता की खोज के समय समुद्र लांघकर लंका जाने से लेकर और लंका से वापसी तक हनुमान जी ने जिस विवेक का परिचय दिया है वह नि:संदेह अद्भुत है। लंका के दरबार में दशाशीष के सम्मुख भी जरा भी विचलित न होना और पूंछ में लगी आग से लंका को जलाने का अवसर खोज लेना उनका विवेक ही तो था।
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubts, please let me know