उत्तर प्रदेश////विश्व के सबसे पुरातन धर्म हिन्दू धर्म में प्रचलित परंपराएं न केवल ऐतिहासिक और प्रामाणिक हैं बल्कि धार्मिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक रूप से पूर्णतयः समृद्ध है और प्रामाणिक भी हैं। इसका उदाहरण समय समय पर होने वाले त्योहारों ,पर्वो, विशेष दिवसों, के रूप में देखे जा सकते हैं।
बात सनातन धर्म के पवित्र सावन मास की करें तो हिन्दू धर्म मे सावन मास सबसे पवित्र माह माना जाता है जो हिन्दू धर्म के सबसे सरल ,सहज,औघड़दानी देवाधिदेव महादेव शिवशंकर भोलेनाथ का मास माना जाता है। उसमे भी सावन मास के सोमवार का अपना विशेष महत्व होता है।
हिन्दू धर्म की ग्रंथो, पुराणों की मान्यता के अनुसार भगवान शिव से विवाह के लिए माता पार्वती जी ने सावन मास में विशेष व्रत धारण कर तपस्या की थी। साथ ही भगवान शिव से विवाह के लिए माता पार्वती ने सोलह सोमवार का विशेष व्रत किया था। इसलिए हिन्दू धर्म मे सावन मास और इसके हर सोमवार का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव को सावन मास बहुत ही प्रिय है।इसलिए सावन मास में शिव आराधना का विशेष महत्व है विशेषकर सावन के सोमवार का ।
वही अन्य कथानक के अनुसार सावन मास में ही देव और असुरों के मध्य में हुए युद्ध -देवासुरसंग्राम के दौरान समुद्र मंथन में निकले विष को भगवान भोलेनाथ ने पी लिया था तब भगवान भोलेनाथ नीलकंठ महादेव के नाम से प्रसिद्ध हो गए थे।
भगवान भोलेनाथ ने जग के कल्याण के लिए विषपान का कदम उठाया था।देवताओ ने शिव के इस त्याग के आगे नतमस्तक होकर विष के प्रभाव को कम करने के लिए भोलेनाथ को जलाभिषेक का विशेष प्रावधान किया गया तबसे भगवान भोलेनाथ को जलाभिषेक का अपना अलग ही महत्व है ।
पुराणों के अनुसार सावन मास का भोलेनाथ से अलग ही लगाव माना जाता है इसलिए शिव भक्त सावन में भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना जलाभिषेक का विशेष आयोजन कर भोलेनाथ को प्रसन्न करते है इसी क्रम में कांवर यात्रा और रुद्राभिषेक जैसे विशेष अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है।
इसके लिए देश व विदेश में शिव के शिवलिंगों की पूजा अर्चना में शिवभक्त समय निकाल कर जाते हैं।
इसी क्रम में आज हम चर्चा करेंगे उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के खरगूपुर क्षेत्र में स्थित महाभारत काल के योद्धा पांडवो द्वारा अपने अज्ञातवास में स्थापित किये गए विश्व के सबसे बड़े शिवलिंग बाबा पृथ्वीनाथ मंदिर की।
बाबा पृथ्वीनाथ मंदिर उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के पश्चिमी छोर के रुपईडीह ब्लॉक के खरगूपुर क्षेत्र के पचरन गांव में स्थित है।
ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल मे जब कौरवो द्वारा जुए में पांडवो से राजपाठ छीन लिए गए तो उन्हें वनवास के बाद एक साल का विशेष अज्ञातवास का समय भी भोगना पड़ा था।
इस दौरान शर्त के अनुसार पांडवो को बिल्कुल छिप कर रहना था । शर्त के अनुसार तब पांडव देश के विभिन्न जंगलो और अज्ञात जगहों पर पहचान छिपा कर रहे थे उन्ही स्थानों में गोण्डा जिले के बाबा पृथ्वीनाथ का यह क्षेत्र भी है जहां पांडवों ने अज्ञातवास के कुछ समय बिताये थे।
इसी अज्ञातवास के दौरान पांडव इस क्षेत्र में छिपकर रह रहे थे। तो एक ब्राह्मण के घर मे पांडवो ने अपनी माता और पत्नी के साथ शरण मिली थी । उस समय इस क्षेत्र में एक भयंकर राक्षस बकासुर के आतंक से पूरा क्षेत्र त्राहिमाम- त्राहिमाम कर रहा था।
बकासुर को भोजन के लिए प्रतिदिन एक बैलगाड़ी अनाज और एक मनुष्य को प्रस्तुत करना पड़ता था। राजा मानसिंह ने राज्य में व्यवस्था बनाये रखने के लिए बकासुर से ऐसी शर्त मान ली थी।
शर्त के अनुसार उसी ब्राह्मण के घर से उसके पुत्र को बैलगाड़ी के साथ बकासुर के भोजन के रूप में पेश होना था।जिस ब्राह्मण के घर पांडव अपनी माता कुंती और पत्नी के साथ रुके थे।
कुंती को यह पता चला कि ब्राह्मण के घर मे सब दुखी है पूरा मामला जाना तो भीम को बैलगाड़ी के साथ बकासुर के पास जाने का आदेश दिया ।
तब यह क्षेत्र चक्रानगरी के नाम से विख्यात था। भीम के बैलगाड़ी भरे अनाज के साथ बकासुर के पास आने पर दोनों के मध्य महायुद्ध हुआ। युद्ध मे महाबली भीम ने बकासुर का बध कर दिया। जिससे इस क्षेत्र में शांति और खुशी फैल गयी।
बकासुर शाप के कारण ही राक्षस हुआ था । वास्तव में वह एक ब्राह्मण ही था इसका पता चलने पर भीम को ब्रह्म हत्या का दोष लगा ।
पंडितो ने भीम को ब्रह्महत्या से मुक्ति के लिए सावन मास में शिव लाट की विशेष पूजा अर्चना करने पर ब्रह्म हत्या से मुक्ति का मार्ग बताया इसी का अनुसरण करते हुए महाबली भीम ने बाबा पृथ्वीनाथ महादेव की साढ़े पांच फीट का शिवलिंग स्थापित किया था।
वही एक और मान्यता के अनुसार अज्ञातवास के दौरान पांडवो द्वारा शिव आराधना के लिए पांच शिवलिंगो की विशेष स्थापना की गयी थी।
इनमे पहला शिवलिंग अयोध्या में सरयू तट पर स्थित ऐतिहासिक नागेश्वरनाथ महादेव शिवलिंग की स्थापना हुई,वहीं दूसरी शिवलिंग गोंडा के मुख्य बाजार में स्थित दुखहरणनाथ शिवलिंग है , तीसरा शिवलिंग खरगूपुर बाजार से 02 किलोमीटर पश्चिम स्थित झारखंडेश्वर महादेव शिवलिंग है , चौथा शिवलिंग खरगुपुर से ढाई किलोमीटर पश्चिम में पचरन गांव स्थित बाबा पचरननाथ शिवलिंग है वहीं पांचवा शिवलिंग विश्वप्रसिद्ध बाबा पृथ्वीनाथ का ऐतिहासिक शिवलिंग हैं जिन्हें मान्यता के अनुसार पांडवो ने पूजा अर्चना के लिए स्थापित किया था। ऐसा माना जाता है पांडव बहुत बड़े शिवभक्त थे । इन पांचो भाइयो ने यह पांच शिवलिंग अलग अलग जगहों पर विशेष प्रयोजन पर पूजा अर्चना कर स्थापित किये थे।
इनमे बाबा पृथ्वीनाथ का ऐतिहासिक शिवलिंग सबसे बड़ाशिवलिंग है जिसे पांडवो के महाबली भीम ने स्थापित किया था ।
यह शिवलिंग साढ़े पांच फीट ऊंचा है। यह शिवलिंग विशेष दुर्लभ काले-कसौटे पत्थर से निर्मित है। जो एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा शिवलिंग माना जाता है।
बात ऐतिहासिक शिवलिंग बाबा पृथ्वीनाथ की करें तो यह शिवलिंग पूरे देश मे अलग पहचान के लिए जाना जाता है । यहाँ देश विदेश से शिवभक्त जलाभिषेक,कांवर और मनौती के लिए सालभर आते रहते है । यह मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में जिलाधिकारी गोण्डा के देख रेख में संचालित है।
यहां आने के लिए जनपद गोण्डा मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर का सफर तय करना होता है।
यहां हर सोमवार,तेरस,शिवरात्रि, कजलीतीज और हर शुक्रवार को भक्तो द्वारा जल, बेलपत्र, दूध, दही, मधु, गन्ना, मिस्ठान, बेर आदि से पम्परानुसार पूजा अर्चना व जलाभिषेक के लिए विशेष जमघट होता है।
यहां सावन मास में एक माह तक बहुत बड़ा मेला लगता है क्योंकि इस दौरान पूजा जलाभिषेक का अलग महत्व ही है।
ऐसी मान्यता है कि यहां सच्चे मन से जलाभिषेक व पूजा अर्चना करने वाले भक्तो की भगवान भोलेनाथ सालभर के भीतर मनौती अवश्य पूरी करते हैं। इसका प्रमाण यह है कि हर सोमवार व शुक्रवार को यहां सैकड़ो लोग मनौती के ब्राह्मण भोज व भंडारे का आयोजन करते रहते हैं।
मंदिर में पूजा अर्चना के लिए साशन द्वारा विधिवत पुजारी नियुक्त है जिला प्रसाशन लगातार निगरानी करता रहता है।
यहां आने के लिए गोण्डा मुख्यालय से खरगूपुर बाजार तक आना होता है फिर खरगूपुर से छोटे वाहन से पृथ्वीनाथ मन्दिर तक जाया जा सकता हैं।अपने निजी वाहन से आने पर सुविधाजनक होता है।
यूपी टूरिज्म ने अपने ऐतिहासिक धरोहरों में बाबा पृथ्वीनाथ मंदिर को विशेष जगह दी है।
उमेश चन्द्र तिवारी
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