सहारा इंडिया की समस्या का
समाधान करे सरकार !
सुब्रत
रॉय सहारा किसी परिचय के मोहताज नहीं है | देश ही नहीं बल्कि दुनियां के कोने –
कोने के लोग उन्हें जानतें है | पर विगत कुछ वर्षो में भुगतान न देने की वजह से हर
तरफ उनके प्रति और उनकी संस्था के प्रति नकारात्मक माहौल बना हुआ है | कई जगह
प्रदर्शन, केस दर्ज होना इत्यादि हो रहा है | विगत 44 वर्षो से अधिक समय से सहारा
इंडिया परिवार ने उनके निवेशकों को सर्वोपरि रखा है साथ ही देश समाज और समाज के कई
वर्गो के लिए उन्होंने व्यापक सहयोग भी दिया है | पर वर्तमान परिवेश में परिस्थिति
उनके पूर्ण रूप से विपरीत दिख रही है | कहने को इस देश में न्याय की कई व्यवस्थाएं
मौजूद है पर शायद सहारा के लिए नहीं ! इस देश की सबसे बड़ी विषमता यही है की नियम
कानूनों की आड़ में बड़े से बड़े समूह के हितों की अनदेखी कर दी जाती है जबकि साधारण
सी बात है की नियम लोगों के हितों के लिए बनाये जातें है न कि लोग नियमों के लिए |
यदि आप सहारा इंडिया का इतिहास उठा कर देखेगे तो आपकों मिलेगा की हर विषम से विषम
परिस्थिति का उन्होंने डट कर मुकाबला किया है भले ही इसके लिए उन्हें बड़े आर्थिक
और व्यावसायिक नुकशान को उठाना पड़ा हो |
सुब्रत
रॉय सहारा की एक दो नहीं बल्कि अनेकों इकाइयों को विभिन्न नियामकों ने नियमों का
हवाला दे कर न केवल बंद करा दिया, बल्कि एक ऐसी स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है
जहाँ एजेंट, निवेशकर्ता, कर्मचारी, प्रबंधक, और समूह से विभिन्न कार्यो के लिए
जुड़े लोग अपनी आर्थिक तंगी की अंतिम साँस गिन रहें है | आश्चर्यजनक यह है कि इनकी
संख्या लाखों में है | जिस देश के पिछड़े से पिछड़े वर्गो को सुब्रत रॉय सहारा ने
अपने मेहनत और कौशल से बचत करना सिखाया, आम लोगों और आर्थिक गति को एक नई दिशा दी
उन्हें समय –समय पर सभी सरकारी संस्थानों ने नियमों का हवाला देकर सिर्फ दर्द ही पहुंचायां
है | कही - सुनी बातों पर यदि आप सुब्रत रॉय सहारा का मूल्याङ्कन करेगें तो हो
सकता है कि आप उस निष्कर्ष पर पहुचें जो उनकी नकारात्मक छवि आपके दिमाग में बनाये,
पर यदि आप तथ्यों आकड़ो और वास्तविकताओं को संज्ञान में लेकर मूल्याङ्कन करेगे तो
आप पाओगे कि सिस्टम ने सुब्रत रॉय सहारा को बुरी तरह कुचल कर बर्बाद कर दिया है |
मसलन सहरा सेबी विवाद में 25 हजार करोड़ से अधिक पैसा सहारा द्वारा जमा किया गया है
परन्तु आज भी सहारा के अनेकों निवेशक दर – दर भटक रहें है | इससे बड़ी विडम्बना
क्या हो सकती है कि बिना किसी कारण सुब्रत रॉय सहारा को न केवल जेल में रहना पड़ा,
बल्कि देश की सबसे बड़ी जमानत धनराशी का निर्णय उन्ही के खिलाफ दिया गया |
इन्सान
के संघर्षो की कहानी असीमित है, परन्तु ऐसे लोग जो समाज और देश की प्रगति के लिए
प्रतिबद्ध है उन्ही के खिलाफ यदि लगातार कार्यवाही की जाएगी तो उनका विश्वास देश
और देश की व्यवस्था से उठना लाजिमी है | 74 वर्षीय सुब्रत रॉय सहारा किस मानसिक
पीड़ा और दर्द से गुजर रहें होंगे उसका एहसास देश में शायद किसी को हो | उनके लिए
बेहद आसान जरुर रहा होगा अन्य बड़े लोगो की
तरह देश छोड़ कर भाग जाना, पर उनकी कर्तव्यनिष्ठा, देश प्रेम और लोगों के प्रति
जिम्मेदारी के एहसास ने आज भी उन्हें मजबूत बना रखा है, तभी तो हर मौके पर जल्द सब
कुछ अच्छा होने की उम्मीद न केवल स्वयं में संजोयें हुए है, बल्कि अपने सभी
साथियों से निरंतर संवाद बनाकर के उन्हें भी भरोसा दिला रहे है | देश के सबसे बड़े
बैंक और कई अन्य समूहों पर आपदा आने पर पूरा सिस्टम एक हफ्तें में ही धराशाही हो
गया और निवेशकों ने इतना हंगामा किया की आज उन संस्थानों का अस्तित्व कही नहीं
दिखाई पड़ता | जबकि सहारा सेबी विवाद लगभग एक दशक से अधिक समय हो जाने के बावजूद
सहारा पर लोगों का भरोसा देखने को स्वतः मिल रहा है |
सेबी
के पूर्व चेयरमैन ने अपनी जीवनी में इस बात का जिक्र किया है कि जितनी रिकवरी
सहारा के केस में हो गयी आज तक किसी भी केस में नहीं हुई है | सुब्रत रॉय सहारा एक
ऐसा व्यक्तित्व जिनकी प्रतिबध्दता देश के लिए, लोगों के लिए सर्वोपरि है, ऐसा कई
मौको पर प्रमाणित भी हुआ है | देश के पूर्व प्रधानमंत्री समेत कई बड़े दिग्गजों ने
इनके कार्यो की खूब प्रसंशा की है | एक दो नहीं बल्कि अनेकों अवार्ड और सम्मान से
सुब्रत रॉय सहारा को देश विदेश से सम्मानित किया गया है | उनका उत्साह और कार्य के
प्रति जुनून देखतें ही बनता है, पर देश की व्यवस्था ने उन्हें तोड़ने में कोई कसर
नहीं छोड़ी है | देश के जितने भी बड़े नियामक है उनका कार्य किसी भी संस्था की कमियों
को दूर करके कार्य करतें रहने देना होना चाहिए, पर इसके ठीक विपरीत ये नियामक उस संस्थान
को बंद करा करके अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जातें है | कोई भी संस्थान यदि
चार दशक से अधिक समय से कार्य कर रहा है ऐसे में यह प्रश्न भी उठाना लाजिमी है कि
चार दशकों तक सभी सरकारी एजेंसियां कहाँ थी |
क्या
सरकार, नियामक, न्यायालय को सहारा से जुड़े किसी भी व्यक्ति की तनिक भी चिंता है ?
शायद नहीं तभी तो किसी के भी द्वारा इतने बड़े समूह की समस्या का समाधान करेने की
त्वरित पहल नही की गयी | क्या किसी भी जिम्मेदार लोगों द्वारा इस बात पर जोर दिया
गया की वास्तव में सहारा की समस्याओं का समाधान क्या है ? सभी समाधान से बचना
चाहतें है और नियमों का हवाला देकर अपना पल्ला छुड़ा लेते है | देश का यह पहला
मामला है जिसमे न केवल सरकारें बदली, अधिकारी बदले, माननीय लोग बदले पर नहीं कुछ बदला
तो सहारा की समस्याओं का समाधान | आप सुब्रत रॉय सहारा के प्रति चाहें जो भी
सोचतें और समझतें हो, यदि आप अंतर्मन से सोचेगे और समझेंगे तो आपको मिलेगा कि एक
ऐसा व्यावसायी जो देश और आम लोगों को बहुत कुछ और दे सकता था उसका गला काट दिया
गया और वह तब तक जिन्दा है जब तक की उसके खून का कतरा - कतरा बाहर नहीं आ जाता |
जिस सिद्दत से सहारा पर कार्यवाही की जा रही है उसी सिद्दत से देश के सभी
व्यावसायिक इकाइयों पर की जाए तो शायद ही कोई संस्थान कार्य कर पाए |
सुब्रत
रॉय सहारा और उनके साथ जुड़े सभी साथी वास्तव में प्रसंशा के पात्र है, कि धैर्य से
इस विषम परिस्थिति में लगातार न्याय की आस लगाये इंतजार कर रहें है और यह इंतजार
शायद उस अँधेरी रात की तरह हो चुका है, जिसके सुबह की चाभी एक दो नहीं कई लोगों के
पास है पर उसे खोलना कोई नहीं चाहता | दो सौ से चार सौ करोड़ की अनेकों कम्पनियाँ
देश में कार्य कर रही है | सरकार और सम्बंधित यदि इतनी तटस्थता दिखाएँ की 25 हजार
करोड़ का निस्तारण जल्द से जल्द कर दे तो देश के सबसे बड़े वित्तीय विवाद का न केवल
अंत हो जायेगा, बल्कि लाखों लोगों की रोजी रोटी बचने के साथ – साथ लाखों नए लोगों
की बेरोजगारी सहारा समूह दूर कर पायेगा | पुनः हम अपनी बात पर बल दे कर कहना
चाहेगें कि सुब्रत रॉय सहारा वास्तव में प्रसंशा और उदहारण के पात्र है जो संकट की
एक लम्बी अवधि में भी धैर्य के साथ अडिग तरह से लड़ रहें है, वो भी अपने लिए नहीं
बल्कि उनके साथ जुड़े लाखों लोगों के लिए | ऐसी आशा की जा सकती है, कि सरकार और
सम्बंधित इस विषय का संज्ञान लेकर, सुब्रत रॉय सहारा की बातों को समझतें हुए,
लाखों लोगों के बारें में अविलम्ब उचित निर्णय लेगे | क्योंकि बारिश का अस्तित्व
तभी तक है जब तक की फसल सुख न जाए और इस केस में फसल सूखने की अंतिम क्षण में है
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- श्री अखिलेश कुमार मिश्रा
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