जौनपुर। रचना- देखुआर और देखुआरी प्रथा.....

गाँव-देश में बेटियों के लिए
वर ढूंढने जाना
देखुआरी कही जाती रही है.....समाज के ऐसे चुनिंदा लोग, मान्यता प्राप्त...समझदार लोग...
जिनकी सामाजिक प्रतिष्ठा होती और बड़ी मान-मनौवल के बाद देखुआरी में जाने को तैयार होते
इनको देखुआर की संज्ञा दी जाती
वर के चयन का.....इनका अपना बनाया हुआ,
मानक और मानदण्ड होता....
देखुआरी जाने पर
शुरुआत घर के दरवाजे से होती एक-पलिया दरवाजे को
घर में मतभेद का संकेत,
अधिक उँचाई वाले दरवाजे को
घर-मंदिर की बेक़दरी का और...दरवाजे के बाहर दुधहड़ में
दूध गरम किया जाना.....इस बात का संकेत होता कि
घर की महिलाओं के लिए
दूध की व्यवस्था नहीं है....नाली में अन्न न होने का मतलब
घर में बरकत ना होना होता...ये देखुआर जान-बूझकर भोजन
घर के आँगन में ही करना पसंद करते,
घर में आँगन न होना
शगुन की दृष्टि से शुभ नहीं मानते भोजन के दौरान पीढ़े की लकड़ी
थाली में परसे हुए अन्न तक की
अपनी-अपनी व्याख्या करते
बाजरे के भात के ऊपर....चावल के भात लगाकर
परसने के अंदाज पर...घर की....
महिलाओं का विश्लेषण करते सिलबट्टे पर पिसी चटनी का
स्वाद, रंग और गाढ़ापन भी मानदण्ड का आधार था
कनखी नजरों से....
चूल्हा निहार लेना,
फुकनी की मोटाई और
ईंधन,उपली,लकड़ी के साथ ही
चिमटे की आवाज से....रसोई औऱ रसोइयां का
अंदाज लगाने में भी
इनकी महारत होती....यहाँ तक कि खैनी-चुनौटी,
सुपारी-सरौता और
पान-पानडब्बा भी परखे जाते
देखुआरी के दौरान....लड़के का रंग-रूप,डील-डौल,
काज़र-जुल्फी,नैन-नक्श और
पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ....दो मजबूत रिश्तेदारियां भी
पूछ लेते...परख लेते...साथ ही...हीरा-मोती और गौरी-कान्हा
के अलावा हरिया मजदूर पर भी
भरपूर चर्चा होती.....इन मानदण्डों पर
खरा उतरने के बाद ही....
ये देखुआर तय करते थे
एक अदद दामाद....! मित्रों... अब तो समय बीत गया
लड़कियाँ खुद ही
अपना वर चुन ले रही हैं....उनमें टीवी-सिनेमा वाले
प्यार का नशा है....
नवयुवको में भी
लिव इन रिलेशन और लव मैरिज का भरपूर चलन है
इधर आश्चर्य इस बात का है कि
हमारा समाज भी....प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से
इस कल्चर का 
कदरदान हो गया है.....इंटरनेट या सोशल मीडिया से
दामाद खोजे जाने लगे हैं और
नए मानदण्डों पर....! उनकी परख होने लगी है....
मोटर-कार,बंग्ला और
नौकरी जैसे विषय पर.....! जाहिर है अब देखुआरों की
कदर घटती जा रही है....पर.....
यह भी सच है कि समाज में टूटते रिश्ते,
पारिवारिक विघटन औऱ
बढ़ता हुआ कलेश.....इस बात का संदेश है कि
समाज को अब...और कठिन मानदण्डों वाले
देखुआरों की जरूरत है....
और कठिन मानदण्डों वाले
देखुआरों की जरूरत है....

रचनाकार....
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक/क्षेत्राधिकारी नगर,जौनपुर

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