क्रांतिकारी व आमूलचूल बदलाव लाने वाले हैं विधानसभा चुनावों के परिणाम – अनुज अग्रवाल
March 11, 2022
छद्म हिंदुत्ववादियों, पत्तलकारों, कुबुद्धिजीवियों और अल्पसंख्यकवाद व जाति की राजनीति करने वाले दलों के प्रपंच और षड्यंत्रों को धता बताकर अंतत पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों में सनातन संस्कृति, राष्ट्रवाद, हिंदुत्व , डबल इंजन की सरकार, लाभार्थी जाति के समर्थन और विकास के एजेंडे पर काम कर रही भाजपा चार राज्यों में फिर से अपनी सरकार बनाने में सफल हो गयी है तो दूसरी ओर सत्तारूढ़ कांग्रेस की अंतर्कलह , कुशासन , अकाली दल के सिरमौर बादल परिवार के भ्रष्टाचार से तंग, भाजपा के देर से सक्रिय होने के कारण व किसान आंदोलन और खालिस्तान आंदोलन व मुफ्त योजनाओं के लालच में पंजाब की जनता नए चेहरों वाली आम आदमी पार्टी को भारी बहुमत से सरकार की डोर थमा बैठी।
सन 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए लिटमस टेस्ट माने जाने वाले इन चुनावों के परिणामों ने कोरोना संकट के कारण अतिशय दबाव व चुनौती झेल रही केंद्र में सत्तारूढ़ मोदी सरकार को नई संजीवनी दी है।सन 2019 के लोकसभा चुनावों के परिणामों के बाद से ही विपक्षी दलों के साथ ही नौकरशाही, न्यायपालिका, मीडिया, अल्पसंख्यक समुदायों व बुद्धिजीवियों का एक वर्ग खुले और व्यापक स्तर पर मोदी सरकार के अनेक नीतिगत निर्णयों का हर सीमा से परे जाकर विरोध कर रहा था। विरोध के लिए विरोध को राजनीति के इस खेल का ये चुनाव परिणाम अंत कर देंगे ऐसी आशा है। क्रांतिकारी व आमूलचूल बदलावों वाले इन विधानसभा चुनावों के प्रभावों को आइए इन बिंदुओं से समझते हैं – 1) यह चुनाव परिणाम मोदी सरकार की नीतियों व नीतिगत फ़ैसलों पर जनता की मुहर है और विपक्ष की अंधे विरोध की राजनीति को एक बड़ा तमाचा हैं। अगर विपक्ष ने अपनी रणनीतियों में सकारात्मक बदलाव नहीं किया तो वह अप्रासंगिक होता जाएगा और सन 2024 में मोदी फिर से प्रचंड बहुमत से आ जाएँगे। अगर विपक्ष मोदी की नीतियों का समर्थन कर सकारात्मक व रचनात्मक भूमिका में आता है तो भी वह मोदी सरकार की नीतियों पर विपक्ष की मुहर लगने जैसा होगा और इसका लाभ भी मोदी को ही मिलेगा। निहितार्थ यह है कि अब लंबे समय तक देश में विपक्ष हाशिए पर ही रहेगा और अनेक राज्यों में भी सिकुड़ता जाएगा।
2) ये चुनाव धर्मनिरपेक्ष व अल्पसंख्यकवाद की राजनीति के सिमटने व सिकुड़ने का संकेत दे गए हैं। भारत में किसी भी दल को आगे बढ़ने के लिए बस अस्मिता,राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और विकास के साथ ही योजनाओं का ज़मीनी स्तर पर प्रभावी क्रियान्वयन और अति सक्रियता व संवेदनशीलता का मंत्र अपनाना होगा। ऐसे में मन मसोस कर नरम व छद्म हिंदुत्व अपनाने वाले दलों को प्रखर हिंदुत्व की ओर बढ़ना होगा और अल्पसंख्यकों को कट्टरवाद की राजनीति से निकल मुख्यधारा में आना होगा।
3) योगी सरकार का पुन चुना जाना संघ परिवार की नीतिगत जीत है और हिंदुत्व की प्रयोगशाला बने पच्चीस करोड़ की आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के प्रारूप को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित होने पर जनता की मुहर है। संघ परिवार को मोदी के बाद योगी एक भविष्य के स्वाभाविक विकल्प के रूप में मिल गए हैं। बस अब आवश्यकता मोदी और योगी को आपसी संयम और सौहार्द बनाकर एक इकाई के रूप में आगे बढ़ने की है तो अमित शाह को चेक- बैलेंस के खेल से दूर रहने की है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो भाजपा व संघ परिवार गुटबाजी का शिकार जो बिखर सकता है।
4) दुनिया व प्रकृति व्यापक बदलावों से दो चार है । इन बदलावों ने उद्योग-व्यापार के परंपरागत तरीकों को बदलकर रख दिया है। तकनीक की बढ़ती दखल रोजगार काम कम कर रही है । ऐसे में जनकल्याणकारी योजनाओं व मुफ़्त बाँटने के खेल राजनीति की आवश्यकता नहीं मजबूरी बन गए हैं। इस सच्चाई को समझकर जिस भी राजनीतिक दल ने इन योजनाओं को ईमानदारी से ज़मीन पर क्रियान्वित किया है वे दल ही अब सफल हो सकते हैं यह भी इन चुनाव परिणामों का निहितार्थ है।
5) इस चुनाव परिणामों के यह भी निहितार्थ हैं कि कांग्रेस पार्टी अब डूबता जहाज नहीं रही वरण डूब चुकी है और अगले लोकसभा चुनावों तक पूरी तरह समाप्त और अप्रासंगिक हो जाएगी।
6) भगवंत मान के पूर्ण राज्य पंजाब का मुख्यमंत्री बनते ही वे अधूरे राज्य के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सहयोगी की जगह प्रतिद्वंदी बन जाएँगे। मनीष सिसोदिया भी दिल्ली के मुख्यमंत्री की गद्दी पर नजर गड़ाए है। अगर केजरीवाल पार्टी का विस्तार राष्ट्रीय स्तर पर करने के लिए भागदौड़ करेंगे तो उनकी पकड़ दिल्ली व पंजाब दोनो पर काम होती जाएगी और विपक्षी नेता मोदी के मुक़ाबले उनके नेतृत्व को स्वीकार करेंगे इसकी संभावना भी काम ही है। देखना दिलचस्प होगा कि वे इस चुनौती का सामना किस प्रकार कर पाएँगे।
7) अनेक राज्यों में त्रिकोणीय मुकाबले व सहयोगी दलों के साथ से सरकार बनाने वाली भाजपा अब दोतरफ़ा लड़ाई में भी जीत रही है और बिना सहयोगियों के भी । यह नई भाजपा है जो नए प्रकार के संगठन व सूत्रों से संचालित है और हिंदुत्व पर खुलकर मुखर ही चुकी है । ऐसे में आरएसएस की भूमिका व स्वरूप सिमटता जा रहा है।
8) अंतरराष्ट्रीय स्तर पर द्रुत गति से हो रहे परिवर्तनों का भी भारतीय राजनीति पर प्रभाव पड़ना तय है। आने वाले समय में नाटो देशों की भूमिका भारत की राजनीति व आंतरिक मामलों में सीमित जो जाएगी। भारत रुस व चीन से भी संतुलन बनाएगा या फिर तटस्थ राष्ट्रों का गुट बनाएगा। ये परिवर्तन देश की राजनीति व समीकरणों को बदल कर रख देंगे।
9) सन 2024 के लोकसभा चुनावों में मोदी के खिलाफ ममता, केजरीवाल, राहुल। व पावर के साथ ही अब स्टालिन, केसीआर, तेजस्वी व अखिलेश भी दावेदारी ठोकेंगे। अगर ये नेता संयुक्त मोर्चा बनाने व स्पष्ट नेतृत्व का चयन करने में विफल रहे तो अपने अपने राज्यों में भी बड़ा नुकसान झेलेंगे।
10) अति आत्मविश्वासी भाजपा अब झारखंड व महाराष्ट्र में जोड़तोड़ या गठबंधन से अपनी सरकार बनाने की पूरी कोशिश करेगी। आगामी हिमाचल व गुजरात चुनावों में भी उसकी वापसी तय है।
11) राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति चुनाव भाजपा के मिशन – 2024 व चप्पा चप्पा भाजपा के नारे को जमीन पर उतारने का उपकरण बन सकते हैं। नीतीश को राष्ट्रपति बना बिहार में भाजपा नेतृत्व वाली सरकार बनाने और मायावती को उप राष्ट्रपति बना यूपी में दलित वोट दिलवाने व आगे दलित वोटों को अपने पक्ष में करने का दाँव भी चला जा सकता है। समीकरण बदलने पर इन पदों के लिए थावर चंद गहलोत व आरिफ़ मोहम्मद खान के नाम आगे बढ़ाए जा सकते हैं।
12) केंद्र व भाजपा शासित राज्यों में संघ अजेंडे से जुड़े बड़े नीतिगत व प्रशासनिक निर्णय लिए जाएंगे जिससे हिंदुत्व व सुशासन के एजेंडे को धार दी जा सके। ये बदलाव लोकसभा के पुनर्गठन, नए राज्यों का गठन, समान नागरिक संहिता, नए रूप में सीएए व एनआरसी, संशोधित कृषि कानूनों, एक राष्ट्र एक चुनाव , केंद्र व राज्यों में व्यापक प्रशासनिक व न्यायिक सुधार, जनसंख्या नियंत्रण नीति, किसान सम्मान निधि में भारी बढ़ोतरी, शिक्षा ,स्वास्थ्य व कृषि नीतियों में भारत परक बदलाव , निजीकरण,आत्मनिर्भर भारत अभियान की तीव्रता से लागू करने के क्षेत्र में हो सकते हैं।
अनुज अग्रवाल
संपादक, डायलॉग इंडिया
www.dialogueindia.in
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