राज्य संग्रहालय, लखनऊ द्वारा आयोजित ‘‘कला अभिरूचि पाठ्यक्रम’’ की श्रृंखला के अन्तर्गत आज दिनांक 06 मार्च, 2022 को ‘‘पुरातात्विक नियमः एक अवलोकन’’ विषय पर मुख्य वक्ता इन्दु प्रकाश द्विवेदी, पूर्व अधीक्षण पुरातत्वविद्, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, लखनऊ मण्डल, लखनऊ  द्वारा पावर प्वाइन्ट के माध्यम से रूचिकर व्याख्यान दिया गया।
इस श्रृंखला में प्रथमतः वक्ता द्वारा बताया गया कि 1748 में एशियाटिक सोसाइटी के स्थापना के साथ सांस्कृतिक पुनर्जागरण के नये युग की शुरूआत हुयी तथा इसने भारतीय पुरातत्व में विविध उत्खननों तथा शोध का मार्ग प्रशस्त किया। 19वीं के प्रारम्भ में स्मारकों को संरक्षित करने के लिए अधिनियम बानाया गया, जिसमें देश की सांस्कृति सम्पदा की रक्षा करना प्रमुख घटक था। जिसमें बंगाल विनियमन 1810 मद्राास विनियमन 1817 एवं अधिनियम 1863, द इण्डियन ट्रेजर ट्रोव अधिनियम, 1870, प्राचीन स्माकर संरक्षण अधिनियम, 1904, पुरावशेष अधिनियम, 1947, प्राचीन एवं इतिहासिक स्मारक तथा पुरातात्विक स्थल  एव अवशेष अधिनियम, 1971 एवं 1978 और पुरावशेष एवं कला निधि अधिनियम, 1972 को परिभाषित किया एवं उनके उद्देश्य के विषय में बताया। साथ ही किस प्रकार पुरातात्विक स्थलों को संरक्षित किया जाये के विषय में बताया।  
कार्यक्रम के अन्त में संग्रहालय के निदेशक डॉ0 आनन्द कुमार सिंह ने कहा कि पुरातात्विक स्थल हमारी अमूल्य धरोहर है। जिनकी सुरक्षा करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। कार्यक्रम का संचालन कर रही डॉ0 मीनाक्षी खेमका ने आज के मुख्य वक्ता का धन्यवाद ज्ञापित किया। उक्त अवसर पर सुश्री अल शाज़ फात्मी, धनन्जय कुमार राय, महावीर सिंह चौहान, प्रमोद कुमार सिंह, आशुतोष श्रीवास्तव, बृजेश यादव, शशिकला राय, शालिनी श्रीवास्तव, गायत्री गुप्ता, नीना मिश्रा आदि उपस्थित रहे।

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