• हिन्दू महाविद्यालय ने मनाया पञ्च दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा महोत्सव


  • डॉ. सुद्युम्न आचार्य, डॉ. इफ़्फ़त जरीं और डॉ .बलराम शुक्ल ने बताया मातृभाषा का महत्त्व



नई दिल्ली: हर वर्ष विश्व भर में 21 फरवरी के दिन को अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है। भाषायी विविधता को प्रोत्साहित करने हेतु दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध हिन्दू महाविद्यालय में पञ्च दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा महोत्सव 21 से 25 फ़रवरी तक मनाया गया। कार्यक्रम के प्रथम दिन संस्कृत के प्रख्यात विद्वान्, राष्ट्रपति सम्मान प्रमाण-पत्र से सम्मानित, मध्यप्रदेश स्थित 'वेद वाणी वितान' के निदेशक डॉ. सुद्युम्न आचार्य ने 'आधुनिक भारतीय भाषाओं के विकास में संस्कृत का योगदान' इस विषय पर आयोजित परिचर्चा में अपने विचार प्रस्तुत किए। 

कार्यक्रम के द्वितीय दिन संस्कृत एवं हिंदी भाषा में स्वरचित काव्यपाठ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस अन्तर्महाविद्यालयीय प्रतियोगिता में दिल्ली विश्वविद्यालय सहित देश के अनेक महाविद्यालयों के छात्र  प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। स्वरचित हिन्दी काव्य पाठ प्रतियोगिता के अन्तर्गत दिल्ली के कालिंदी महाविद्यालय की विशाखा कुमारी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया तो वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय की मातासुंदरी महाविद्यालय की सोनम पाण्डेय ने द्वितीय स्थान हासिल किया। लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र जय सिंह को हिंदी काव्य प्रतियोगिता में तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। संस्कृत की स्वरचित काव्य पाठ प्रतियोगिता में श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के छात्र केवल जोशी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। 

कार्यक्रम के तीसरे दिन उर्दू शायरी का कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें माता सुंदरी महाविद्यालय के उर्दू विभाग की सह-आचार्या डॉ. इफ़्फ़त जरीं ने उर्दू शायरी सुनाकर सबका मन मोह लिया और उर्दू के काव्य सौन्दर्य को प्रस्तुत किया। दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के सह-आचार्य डॉ .बलराम शुक्ल ने 'संस्कृत तथा आधुनिक भारतीय भाषाएँ: आदान-प्रदान' इस विषय पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। 

कार्यक्रम के चतुर्थ दिन महाविद्यालय द्वारा लोकगीत प्रस्तुति का आयोजन किया गया जिसमें मलयालम, मैथिली, राजस्थानी, हिन्दी, पंजाबी,अवधि आदि में सांस्कृतिक लोकगीतों द्वारा प्रतिभागियों ने सभी श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध किया। इस मातृभाषा महोत्सव के अन्तिम दिन संस्कृत-गीत, नृत्य, गायन, स्तोत्र पाठ, लघुनाटक इत्यादि के माध्यम से छात्रों ने अपने कला कौशल का प्रदर्शन किया। 

पञ्च दिवसीय इस अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस कार्यक्रम की संयोजिका और हिन्दू महाविद्यालय की संस्कृत विभाग की सह-आचार्या डॉ. अनीता राजपाल ने इस मौके पर कहा कि 'भारत देश विविधताओं का देश है, भाषायी विविधता के रूप में यहाँ 22 भाषाएं मातृभाषा के रूप में समादृत हैं। अनेक स्थानीय भाषाएं एवं बोलियाँ मातृभाषा के रूप में विकसित हो रहीं हैं। इन सब की जननी 'संस्कृत' है आज अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में सभी भाषाओं की जननी को याद करना हमें गौरवान्वित एवं प्रफुल्लित कर रहा है। संस्कृत ने ही समस्त भारत को एकता के सूत्र में बांधा हुआ है, संस्कृत विश्व की प्राचीनतम व समृद्ध भाषा है आज भी आधुनिक भारतीय भाषाएं चाहें वह उत्तर कीं हों चाहें वह दक्षिण कीं हों, अपनी भाषायी विकास और विस्तार के लिए संस्कृत से ही समृद्ध होती हैं।

हिन्दू महाविद्यालय के संस्कृत विभाग के प्रभारी डॉ. जगमोहन ने कहा कि 'अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के उपलक्ष्य में हिन्दू महाविद्यालय के द्वारा पञ्च दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है क्यूंकि जहाँ पर भी मातृ या माता का नाम जुड़ जाता है वह हमारे लिए निर्माता का काम करता है। इस पञ्च दिवसीय महोत्सव में विविध भाषाओं में प्रस्तुतियाँ, व्याख्यान एवं गीतों का आयोजन किया गया है जो किसी न किसी रूप में हमें अपने मातृभाषा से जोड़ने का काम करेगा।


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