नई विश्व व्यवस्था व मौलिक भारत - अनुज अग्रवाल

दुनिया पर “पिलपिला लोकतंत्र” ( बनाना रिपब्लिक) व लुटेरी बाज़ार अर्थव्यवस्था थोपने वाले अमेरिका व उसके सहयोगी नाटो देशों को पुराने साम्यवादी चीन और रुस जो कि अब पूँजीवादी “बाज़ार समाजवाद” के चेहरे बन चुके हैं, द्वारा बार बार धूल चटाई जा रही है व औकात दिखाई जा रही है। यह बताता है कि यह विचारधाराओं का युद्ध नहीं है बल्कि दबंग देशों का संसाधनों व बाज़ार पर क़ब्ज़े का संघर्ष है जिसमें विकासशील व गरीब देश दबे ब कुचले ही जाने हैं। अबाध शोषक पूँजीवादी देशों के इस युद्ध में अब अमेरिका दुनिया का एकछत्र राजा नहीं है और चीन व रुस भी अब महाशक्ति बन गए हैं।इसके साथ ही ब्रिटेन, फ़्रांस , जर्मनी, भारत , सउदी अरब , तुर्की , ब्राज़ील आदि अनेक क्षेत्रीय शक्तियाँ भी स्थापित हो चुकी हैं। ऐसे में अगले एक दशक में दुनिया की महाशक्तियों व शक्तियों के बीच नए संघर्ष व सहयोग के समीकरण बनने तय हैं। इस उथल पुथल व संघर्ष के बाद ही दुनिया को वर्तमान शोषक व भेदभावपूर्ण विश्व व्यवस्था से मुक्ति मिलेगी व नई विश्व व्यवस्था स्थापित हो पाएगी। लेकिन यह तब भी नहीं कहा जा सकता कि नई विश्व व्यवस्था संघर्षों के समाप्त कर देगी व न्यायपूर्ण और संघर्ष रहित विश्व का निर्माण हो पाएगा। यह भी हो सकता है कि वर्चस्व के इस संघर्ष में सब एक दूसरे को ही न समाप्त कर बैठें। अच्छा हो कि भारत दुनिया को सनातन संस्कृति के  वैकल्पिक प्रकृति केंद्रित व शाश्वत व्यवस्था को अपनाने का अभियान छेड़े। मगर क्या यह संभव हो पाएगा क्योंकि इसके लिए सबसे पहले भारत को ही उस व्यवस्था को अपनाना होगा व “मौलिक भारत” बनाना होगा।
अनुज अग्रवाल 
अध्यक्ष, मौलिक भारत
www.maulikbharat.vo.in

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