रामायण के अनुसरण बिना अधुरा है विजयदशमी त्योहार ?

      

आदि काल से चली आ रही परम्परा को निभातें हुए हम सभी ने पुनः नवरात्री के नौ दिनों के पश्चात् विजयदशमी के त्यौहार को उत्साह और उल्लास के साथ मनाया है | कोरोना काल के बाद यह एक ऐसा पहला अवसर रहा है जिसमे दुःख, तकलीफ और अपनों के बिछड़ने के ग़मों को भूलने की कोशिश करते हुए हम सभी लोगों ने खुशियाँ तलाशने का काम किया है | इसका दूसरा पहलू यह भी है की समय के व्यतीत हो जाने के पश्चात्, त्योहारों के मूल सिधान्तों में बड़ा बदलाव आ गया है जिसे हम सभी ने अपनी आवश्यकता अनुरूप परिवर्तित किया है | जहाँ आवश्यक उद्देश्यों को भूल कर हम सभी मात्र आनंद को महसूस करना चाह रहें है | यदि हम इसकी वास्तविक और आन्तरिक गहराई में जाये तो सभी लोग विजयदशमी का त्यौहार मनातें जरुर है पर उसके आदर्शों को व्यवहार में लाने की तनिक मात्र भी कोशिश नहीं करते जिसका नतीजा आप सभी के सामने है | पाप पर पूण्य, अधर्म पर धर्म, असत्य पर सत्य, अन्याय पर न्याय, राक्षसों पर देवताओं, संकुचित विचारधारा पर बृहद विचारधारा, व्यक्तिगत सोच पर सामूहिक सोच, एकलहित पर सामूहिक हित, लालच पर संयम, वासना पर आचरण, धन पर परिजन, असम्मान पर सम्मान, दयाहीनता पर दया, भेदभाव पर समानता, अंधकार पर प्रकाश, कुरूपता पर सुन्दरता, द्वेष पर प्रेम, असामाजिकता पर सामाजिकता, रावण राज्य पर राम राज्य, स्वार्थ पर त्याग, बेईमानी पर ईमानदारी, आदेश अवहेलना पर आदेश पूर्ति, कूटनीति पर राजनीति, छल-कपट पर पारदर्शिता, कायरता पर वीरता, अवगुण पर गुण, अनीति पर नीति की विजय का प्रतीक है विजयदशमी | जिसे मनाने के पीछे एक लम्बा और प्रमाणित इतिहास दर्ज है | जब भी आप बिना किसी पूर्वाग्रह के रामायण पढ़ते है तो आपके आँखों से अश्रुधारा निकलना इस बात का धोतक है की वास्तव में हम कर क्या रहें है और हमें करना क्या चाहिए |

 

वर्तमान सामाजिकता और आधुनिकता की इस जीवन यात्रा में सभी का उद्देश्य मात्र लाभ कमाना बन गया है अपनी जमीनी आवश्यकताओं की पूर्ति की चारदीवारी से दशकों पहले हम सभी बहार आ गए है और वैश्वीकरण की वर्तमान जीवन शैली में हम दिखावें की चीजों, बातों, और वस्तुओं की सबसे अधिक प्राथमिकता दे रहें है | आज जिसके पास पैसा है वो सर्वप्रिय है जिसके पास आदर्श है आचरण है उसके पास कुछ भी नहीं | अंधकार की दौड़ में लोग इतने व्याकुल होतें चले जा रहें है की किसी को बड़ी हानि देकर भी अपने निजी स्वार्थ लालच, वासना, की पूर्ति करने में तनिक भी ग्लानि महसूस नहीं कर रहें है और यह सब उस जीवन के लिए कर रहें है जो नश्वर है | आज का मानव स्वार्थी बन चूका है और अपने अतिरिक्त उसी के बारें में सोचता है जिससे उसे कुछ लाभ होने वाला हो | पारिवारिक लड़ाई, आपसी संबंधो का विच्छेद, आचरण की समाप्ति इसका जीवंत उदहारण है | हममे से अधिकांश लोग ऐसे है जिन्होंने रामायण को अभी तक एक बार भी नहीं पढ़ा है जबकि हम वर्षो से विजयदशमी का त्यौहार मनातें चले आ रहे है | फिर हम सब से कोई किसी आदर्श की कल्पना कैसे कर सकता है | जिस रास्तें हमें जाना है उसे हमने पढ़ा ही नहीं फिर अनुसरण कैसे करेगे | सिर्फ सामाजिक और आनंद को महसूस करने के लिए प्रतिवर्ष विजय दशमी जरुर मनायेगे | आज जरूरत हम सभी को वचनवद्ध होने की है – “हम सब आगामी विजयदशमी के पहले सम्पूर्ण रामायण का अध्ययन स्वयं एवं अपने परिजनों को जरुर करायेगें” | ऐसा करना न केवल स्वयं में बदलाव स्थापित करेगा बल्कि जीवन की रोजमर्रा की चुनौतियों से लड़ने में हमें मजबूत बनाएगा |

 

अपनी आंखे बंद करिए, अंतर्मन में समाहित होने का प्रयास करिए, ॐ को केंद्र बिंदु बनाइये, फिर अपने आप से प्रश्न करिए की जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है विलासिता या त्याग ? आपको प्रश्न का उत्तर आसानी से मिल जायेगा | जरूरत है त्याग लोगों के प्रति करने की, जरूरत है वीरता और कौशल लोगों के लिए करने की | जरूरत है वचनवद्धता स्वयं और दूसरों के प्रति पूरा करने की, नीति - नियमों के प्रति तटस्थ रहने की, आदर्शो के प्रति, समाज के प्रति, देश के प्रति खड़े रहने की | आज निजी स्वार्थ की विचारधारा से निकलकर सामूहिक हित की सोचने और करने की तभी हम एक ऐसे मजबूत भारत का निर्माण कर सकतें है जो विजयदशमी के त्यौहार को मनाने के पूर्व उसके आदर्शो को जीवन में आत्मसात कर चूका होगा | जीवन की सच्ची यात्रा को शानदार तरीके से जीने के लिए यह बेहद जरुरी है | अपने से पहले दूसरों की परवाह करना जीवन का मूल उद्देश्य होना चाहिए | जिसने दूसरों की परवाह करना सीख लिया वो राम बना, गाँधी बना | पर जिसने सिर्फ अपनी सोची वह न स्वयं का हुआ और न ही दूसरों का | आज कई ऐसे व्यावसायिक घराने है जिन्होंने समूह की सोची और त्याग किया जिसका नतीजा सभी के सामने है | कई ऐसे लोग है जिन्होंने दुसरो के लिए सोचा आज समाज में वो सभी के आदर्श है |

 

अंत में प्रश्न उठता है की हमें क्या करना चाहिए और क्यों करना चाहिए ? इसका सीधा और सरल शब्दों में उत्तर यह है की विजयदशमी का त्यौहार मनाने के पूर्व हम सभी को यह जरुर सुनिश्चित करना चाहिए की एक बार स्वयं और अपने लोग रामायण को जरुर पढ़े और उसके आदर्शों को स्वयं अपनाकर व्यवहार में लाये | ऐसा करने से परिवार, समाज और देश में व्याप्त बुराइयों को समापन धीरे धीरे स्वतः होना शुरू हो जायेगा | ऐसा हम सब को इसलिए भी करना चाहिए “क्योंकि जीवन नश्वर है और इसका लाभ तभी है जब हमारें मन, वचन और कर्म से किसी को सत्य का रास्ता प्राप्त हो | आखिर हमसे पहले भी अनेकों लोग जन्म-मृत्यु को प्राप्त हुए है और आगे भी होतें रहेगे | हम सभी को वही लोग याद है जिन्होंने दूसरों के बारे में सोचने और अच्छे कार्य करने को पहली प्राथमिकता दी | हमारे धर्म और कर्म ही मजबूत आधार है सामाजिक परिवर्तन करके आम जन के जीवन में व्यापक बदलाव लाने के लिए | जब ईमानदारी होगी तो असत्य अपने आप ख़त्म होगा | कलयुग की कुल आयु 4 लाख 32 हजार वर्ष है जिनमे से मात्र 5122 वर्ष अभी पूर्ण हुए है ऐसे में हम सभी को प्रभु श्री राम चन्द्र जी के आदर्शो को जानने और अपनाने के पश्चात्र ही विजयदशमी का त्यौहार मनाना, बदलाव का निर्माण करने में सहायक होगा और अगली पीढ़ी की नीव को मजबूत आधार देगा | आखिर रामायण में इस बात की व्याख्या स्वतः प्राप्त हो जाती है  “जिधर देखों, त्याग करने की होड़ से मची हुई है अयोध्या से लेकर लंका तक सभी त्याग करने में व्यस्त है” | जीवन में त्याग का ही महत्व है जो उपलब्धियों को स्वतः आपके क़दमों में ला देता है जिसका एहसास आपको स्वयं नहीं होता |

 डॉ अजय कुमार मिश्रा

               

 

-----------------

     


Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने