"हाँ रावण तेरे अहंकार ने ही तुझे ये गति दी..वो तो भइया ने मुझे आदेश दिया तुझसे ज्ञान प्राप्त करने का...वरना मैं तेरे अंतिम समय में भी तेरे पास न आता" लक्ष्मण ने अपने जगप्रसिद्ध क्रोध के साथ उत्तर दिया
रावण ने हँसते हुए कहा "जिसने नौ ग्रहों को अपने वश में कर रखा था...जिसने 1000 वर्ष तक इस धरा,आकाश और पाताल पे राज किया..और जिसने श्री हरि विष्णु को अवतार लेने पर विवश कर दिया वो रावण अहंकारी है..तो क्या..मेरे पुत्र इंद्रजीत के नाग पाश से पराजित व्यक्ति को इतना अहंकार शोभा देता है?"
रावण की बात सुन लक्ष्मण कुछ लज्जित हुए,राम के वचनों को याद कर उन्होंने कुछ कहना उचित न समझा रावण ने अपने चरणों की ओर खड़े लक्ष्मण को देखा और विनम्र स्वर में आगे कहने लगा " लक्ष्मण इस संसार में सदैव याद रखने योग्य तथ्य ये हैं कि अपने भेद यदि किसी को दिए हैं तो उसे कभी अपने से दूर मत रखो..दूसरा कभी इन ग्रहों को साधने का प्रयास मत करना..यदि नौ के नौ ग्रह तुमने साध रखे हैं..तब कोई ऐसी प्रचंड ईश्वरीय शक्ति तुम पर आक्रमण करेगी कि तुम्हारा कोई शस्त्र उस को काट न सकेगा..इसलिए हे लक्ष्मण! काल के परे जाना है तो काल के साथ बहो..अपने शत्रु को सदैव बड़ा मानकर उसे छोटा बनाओ..ये अपने भ्राता राम से सीखो..और हे लक्ष्मण कभी भी स्त्री का अपमान मत करो क्योंकि यदि गाय में समस्त देवता वास करते हैं तो स्त्री में समस्त देवताओं की शक्तियाँ निवास करती हैं.." इस तरह रावण ने लक्ष्मण को सामाजिक राजनीतिक कई नीति वचन सुनाए
सबकुछ सुनकर लक्ष्मण बोले "मुझे आश्चर्य है कि इतने ज्ञानी होने पर भी आपने श्री राम से युद्ध किया..और मृत्यु को गले लगाया"
"हाँ मैंने राम से युद्ध किया..क्योंकि मैं अमर होना चाहता था" रावण ने रहस्यमयी स्वर में अपना अंतिम भेद लक्ष्मण पर प्रकट किया
लक्ष्मण और अधिक आश्चर्य से बोले "अमर होना चाहते थे..परन्तु आप तो पहले से ही अमर थे.."
"इतने वर्षों से इस संसार पे शासन करते हुए मैंने जीवन के समस्त सुख भोगे..अपने ही सामने...न जाने कितने ही अपने पुत्र पुत्रियों भ्राताओं को मृत्यु को प्राप्त होते देखा..ये जो आज मेरे अनुज हैं मेरे पिता तुल्य व्यक्तियों की संतानें हैं..मैं अब विराम चाहता था..इस धरा पे कोई नहीं था और न ही कोई स्वर्ग और पाताल में था जो मुझे पराजित कर सकता था..इसलिए मैंने जगत के पालनहार से बैर लिया..इतना अहंकार का स्वांग किया कि उन्हें मेरा अहंकार तोड़ने आना ही पड़ा..परन्तु मैं चाहकर भी अपनी इस अमरता को खोना नहीं चाहता था.." रावण ने दर्द से कराहते हुए कहा
लक्ष्मण ने उत्सुकतावश शीघ्रता से पूछा " अमर होते हुए भी अमर होने के लिए मृत्यु का आलिंगन मुझे समझ नहीं आया"
"लक्ष्मण..इतने वर्षों में शिव साधना से मैं जान चुका था कि मेरी यह सांसारिक अमरता किसी न किसी क्षण समाप्त अवश्य होगी.. मेरी नाभि का ये अमृत मुझे सदा के लिए अमर नहीं रख सकता था.. परन्तु मेरी नाभि में उतरा हुआ ये रामबाण मुझे सदा के लिए अमर कर देगा...लक्ष्मण राम के साथ अब रावण अमर है राम की चर्चा रावण के बिना कभी पूर्ण नहीं होगी..और ऐसा करके मैंने विभीषण को दिए अपने भेद के प्रकट होने के भय से भी मुक्ति पा ली..अब मैं अमर हूँ.. मेरा कोई भेदी नहीं..ये अमृत लिए हुए अब विश्रामावस्था में चला जाऊँगा" रावण ने अत्यंत सुख से ये वचन कहे
लक्ष्मण ने उसको प्रणाम करते हुए कहा "हे महाज्ञानी..अब तो आपको सर्वोच्च विश्राम अर्थात मोक्ष प्राप्त होगा..आप श्री हरि के हाथों पुरस्कृत हुए हैं"
"हा हा हा! लक्ष्मण..जानते हो..मेरे अंतिम समय में राम ने मेरे अनुज विभीषण को न भेजकर अपने अनुज को मेरे समीप क्यों भेजा इसी में ये रहस्य छुपा है..कि मुझे कभी मोक्ष प्राप्त नहीं होगा..विभीषण अपना पश्चाताप न कर सका उसपर मेरी मृत्यु का ऋण है..जब तक इस संसार में ये कहावत ..घर का भेदी लंका ढाए..रहेगी तब तक इस रावण को मोक्ष नहीं मिलेगा अर्थात घरों में जब तक आपसी फूट रहेगी अहंकार को कभी मोक्ष नहीं मिलेगा" रावण संभवतः अपना अंतिम अठ्ठाहस कर रहा था परंतु इस अठ्ठाहस की प्रतिध्वनि प्रत्येक विजयदशमी पे गूँजने वाली थी।
घर का भेदी लंका ढाए ..
जय श्री राम.....
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