घर की किवाड़ें , झरोखें , खिड़कियां,
बंद क्यों , क्या घर की ये है लड़कियां ?
बस दीवारें , दीवारें , दीवारें ही हैं।
घुट घुट के मरते अब सारे ही हैं ।
खुला घर ना बरसों , वो खंडहर हुआ
ना लगी धूप जिसको , ना पानी हवा ।
खोल दो खिड़की , ठंडी हवा आने दो
लगे जाले बरसों के झड़ जाने दो ।
झांक कर देखो फैला अनंतकाल नभ
ये आज़ाद पक्षी , निरंत चाल सब ।
झांक कर देखो , खिलती हुई क्यारियां,
झांक कर देखो , फल से लदी डालियां ।
झांक कर देखो बहुत खूबसूरत है जग
यहां लड़की का होना , कहां और कब ।
झांक कर देखो , गीरेबा गन्दी क्यों है
खिड़कीयों में लड़कियां बंधी क्यों है ।
ये समाजों में बंधी , डरी लड़कियां,
खोल दो इनको , घर की ये है खिड़कियां ।
शिवांगी✍️
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubts, please let me know