शिक्षा और शिक्षक दोनो एक ही सिक्के के दो पहलू है । शिक्षक नही तो शिक्षा का स्तर कैसे सही हो सकता है।  देश मे केंद्रीय विश्वविद्यालय का यह हाल है तो राज्य और निजी विद्यालयों में शिक्षकों की कमी और उनके मानदेयन की स्थिति का आकलन आसानी से किया जा सकता है ।

देश के 42 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुल 18647 पद खाली पड़े हैं। यह संख्या अप्रत्याशित रूप से बड़ी है। इसमें से शिक्षकों के 6210 और शिक्षकेतर कर्मचारियों के 12437 पद शामिल हैं। बुरा है संस्कृत विश्वविद्यालय का भी है। इसके अलावा तीन केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालयों में भी 168 पद खाली पड़े हुए हैं।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने सोमवार को संसद में एक प्रश्न के जवाब में ये बाते बताया, एक सितंबर 2020 तक 42 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के 6210 पद और गैर शिक्षकों के 12437 पद खाली हैं। इसके अलावा इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (इग्नू) में 196 शिक्षकों और 1090 गैर शिक्षकों के पद खाली हैं।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि रिक्तियों का होना और उन्हें भरना एक सतत प्रक्रिया है। पर इग्ने अधिक पद  लंबे समय से खाली पड़े है जो केंद्र सरकार और उनकी इस विषय पर नीति पर बड़ा प्रश्न है । देश के हर कोने से केंद्र सरकार बेरोजगारी और गिरी हुई जीडीपी का विरोध झेल रही है ऐसे में यह जबाब जनता के लिए दर्द भरा है ।

 केंद्र सरकार और यूजीसी विश्वविद्यालयों के साथ निरंतर निगरानी करते हैं। यूजीसी ने 4 जून, 2019 को विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को खाली पदों को भरने के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे। पर स्थिति जस की तस है। 

इसके तहत चयन प्रक्रिया और भर्ती के लिए समयसीमा निर्धारित की गई है। खाली पदों को भरने का काम विश्वविद्यालयों को स्वयं करना होता है। पर आंतरिक कई समस्या्ओ से स्वयं जूझ रहे विश्वविद्यालय शिक्षकों की कमी को आज तक पूरा नही कर पाए है ।

कई समाज सेवी सरकार से काफी निराश है कई पत्रावली के बावजूद आज तक केंद्र और राज्य सरकारों ने कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में समान कार्य और समान वेतन उचित नियमावली आज तक इन शिक्षकों के लिए नही बनाया है ।

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