माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पश्चात् से ही राम मंदिर
निर्माण का रास्ता स्पष्ट हो गया था | राजनैतिक लाभ उठाने के उद्देश्य से राज्य
सरकार ने न केवल फैजाबाद जिले का नाम परिवर्तित कर अयोध्या कर दिया, बल्कि श्री राम की विशाल मूर्ति की स्थापना समेत
कई प्रोजेक्ट सरकारी खर्चो पर करने की घोषणा भी कर दी | वर्तमान केंद्र सरकार की
दिलचस्पी मंदिर में पहले से ही अत्यंत गहरी रही है | मंदिर के मुद्दे पर ही सरकार
अस्तित्व में आयी थी और हाल के दिनों में चुनावी एजेंडा में मंदिर निर्माण को प्राथमिकता
के तौर पर रखा हुआ था | दरअसल यह पूरा मामला राजनैतिक केंद्र बिंदु के चारो-ओर दशको
से घूमता रहा है | फिर चाहे बाबरी मस्जिद का गिराया जाना हो या फिर कार सेवकों पर
गोलियां चलायी जानी हो | इस पुरे मामले में अनेको उतर-चढ़ाव देखे गए है | जिसमे हमेशा
राजनैतिक लाभ-हानि ही सर्वोपरि रहा है | प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के
द्वारा 5 अगस्त 2020 को मंदिर निर्माण की आधारशिला के लिए भूमि-पूजन, राष्ट्रीय
स्वयं सेवक प्रमुख, मोहन भागवत, उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ,
राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और 36 प्रमुख परम्परावों के 135 पूज्य संत महात्माओ की
उपस्थिति में करने के पश्चात् देश में नए राजनैतिक समीकरण की चर्चा तेज है | इस
सम्पूर्ण विवाद की वजह क्या है और आखिर लाभ किसे होने जा रहा, वास्तिवक आवश्यक
मुद्दे कहा है ऐसी अनेको बातो पर चर्चा अपने चरम पर है |
राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि-पूजन के पश्चात् 500 वर्षो से चल
रहे विवाद का न केवल अंत हो गया है बल्कि अब चर्चा इस बात की भी है की आगे और कौन
से बड़े परिवर्तन देश में होने जा रहे है | कई इतिहासकारों का मानना है की 1528 में
मीर-बांकी द्वारा राम-मंदिर को तोड़े जाने के पश्चात् से ही यह विवाद चला आ रहा था
| वर्ष 1949 तक लगभग हुए 76 संघर्षो में 3.5 लाख से अधिक लोगो को अपनी जान गवानी
पड़ी, जिनका सपना अयोध्या में मंदिर निर्माण था | पर वास्तिवकता इससे कही हट करके
है जहाँ हिन्दू के लिए राम मंदिर महत्वपूर्ण है वही मुस्लिमो के लिए बाबरी मस्जिद |
पर वास्तविक समस्या तब उत्पन्न हुई जब एक पक्ष धर्म निरपेक्षता की बात करता है
जबकि दूसरा पक्ष राष्ट्रीय प्रतीक के महत्व की बात करता है और अपने स्थान पर दोनों
सही है | आपको जानकर ताज्जुब जरुर होगा की दुनिया में इंडोनेसिया के पश्चात् सबसे
अधिक मस्जिद भारत में है, तो वही सबसे अधिक मंदिर भी भारत में ही है | यानि विवाद
की कई कोरी कल्पनाओ को यह सीधे ख़ारिज भी कर रहा है |
राजनीति हमेशा बड़े समूह की आवाज को केंद्र मान कर होती रही है
फिर चाहे सरकार किसी की भी हो | वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 79.9
प्रतिशत हिन्दू आबादी है जबकि इस्लाम को मानने वाले लोगो की संख्या 14.23 प्रतिशत है
| भारतीय संविधान में श्री राम का चित्र होना, चल रहे कई प्रश्नों के जबाब स्वयं
दे सकता है | तो क्या यह माना जाये की मंदिर के निर्माण के पश्चात् से हिन्दू
राष्ट्र की मुहीम की शुरुआत होगी ? ऐसे अनेको प्रश्न लोगो के मन में अवश्य ही चल
रहे होगे खासकर एक समुदाय वर्ग में | जिनके बयानों से उनकी विवशता को समझा जा सकता
है | पर वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है | राजनैतिक पार्टियाँ मंदिर निर्माण के
जरिये सत्ता का लम्बा भविष्य देख रही है | क्षेत्रीय रूप में भी धर्म और मजहब इतना
अधिक भारी है की कुछ राजनैतिक पार्टिया परशुराम, कृष्ण इत्यादि की बड़ी मूर्ति की
स्थापना की घोषणा कर रही है | और इन सबके आकर्षण का केंद्र उत्तर प्रदेश है | पर
क्या जनता और देश की यह वास्तिवक जरूरत है ?
एक उद्देश्यपूर्ण और सफल नेतृत्व की प्राथमिक आवश्यकता और सफलता
तभी है जबकि प्रजा का विश्वास राजा में अनिवार्य रूप से हो | राम मंदिर निर्माण
आस्था का प्रतीक जरुर है, पर राम तो सभी के थे, है, और रहेगे | फिर किसी एक को
इसका श्रेय कैसे दिया जा सकता है | करोड़ो लोगो की आस्था, विश्वास, मार्ग-दर्शक
श्री राम के एक मंदिर निर्माण से उनके गौरव में कुछ अधिक बढ़ने वाला नहीं है हाँ यह
जरुर होगा की समूह में लोगो के मन को शांति जरुर मिल रही होगी | राजनैतिक लाभ या
हानी का आकलन अभी से किया जा सकता है जबकि देश की समस्याए अनेको है जिस पर सरकार न
केवल मौन है बल्कि इस तरह के बड़े मुद्दों के आ जाने से अन्य जरुरी बाते या तो गायब
हो जाती है या उनका महत्व ख़त्म हो जाता है | पर इन सभी बातों के लिए सरकार को दोष
देना भी उचित नहीं है क्योंकि सरकार वही करती है जो अधिकांश प्रजा की मांग होती है
| कोरोना वायरस हो, अर्थव्यवस्था हो, रोजगार हो, सभी क्षेत्रो में विकट समस्याए
दिख रही है पर क्या ये कभी प्राथमिक रूप से मुद्दे बन पायेगे ?
कई लोगो के मन में यह बात जरुर चल रही होगी की क्या भारत का कोई
मजहब है ? इसका सीधा सा उत्तर है नहीं पर राजनीति का एक मजहब है जिसका उद्देश्य
सत्ता में बने रहना या फिर सत्ता पाना जरुर है | देश के प्रधानमंत्री जी द्वारा मुख्य
अतिथि के रूप में अयोध्या में उपस्थिति होकर भूमि-पूजन को देखने के बजाय मंदिर के
अहम भाग के रूप में भूमि पूजन करना मंदिर निर्माण को सरकार का प्रोजेक्ट कहा जा
सकता है | पर वास्तविकता यह भी है की केंद्र सरकार की वर्तमान स्थिति कही अलग और पीड़ा-दायक
है जहाँ कोरोना से लोग मर रहें है, बेरोजगारी बढ़ रही है, पड़ोसी देशो से विवाद बढ़
रहा है, वित्तीय अस्थिरता है, आर्थिक मंदी है | वही मंदिर निर्माण का कार्य थोड़े
समय के लिए करोड़ों लोगो को सुकून देने वाला जरुर है, पर वास्तिक पीड़ा और आवश्यकता
का क्या ? जिनका समाधान आज नहीं तो कल सरकार को करना ही होगा | क्या मंदिर निर्माण
भर से देश विश्व शक्ति के रूप में उभर कर सामने आएगा ? या अन्य मुद्दों का समाधान भी
जरुरी है ?
राजनैतिक इच्छा और अवसर को अपने पक्ष में घुमाने की कला जिस भी
नेतृत्व में रही है वह लोगो को अपने पक्ष में मोड़ने में सफल होते रहे है यहाँ तक
की महत्वपूर्ण से महत्वपूर्ण मुद्दे को भी लोग भूलकर आपके साथ हो लेते है | राष्ट्रवाद,
धर्मवाद के बहाने सत्ता प्राप्ति का प्रयास सिर्फ केंद्र सरकार नहीं कर रही है,
बल्कि पूर्व की सरकारों ने भी कोई कसर नही छोड़ी थी | देश के प्रथम प्रधानमन्त्री
पंडित जवाहर लाल नेहरु का कहना था की "उम्र बढ़ने के साथ साथ धर्म के प्रति उनकी
नजदीकीया कम होती गयी", जबकि इंदिरा गाँधी के निर्देशन पर गाय की रक्षा के
विषय पर विवाद आज भी लोगो के जेहन में है |
मंदिर निर्माण के कई पहलू है जनता, कोर्ट, सरकार और विपक्ष पर
वर्तमान परिस्थिति में जहाँ आवश्यकता अनेक बातों की है जहाँ देश में अस्थिरता का
माहौल है, लोगो की आय कम हो चुकी है, कोरोना अपने पाँव तेजी से पसार रहा है, चीन
के साथ सीमा विवाद अपने चरम पर है, पाकिस्तान और नेपाल का रूख भी बदला हुआ है ऐसे
में केंद्र सरकार को राजनैतिक लाभ लेने बजाय महत्वपूर्ण बिंदु पर ध्यान केन्द्रित
करना चाहिये | या यूँ कहे की राम राज्य की कल्पना को साकार करने के लिए नागरिको के
बारें में भी सोचना चाहिये | सरकार मंदिर और मस्जिद के निर्माण के लिए भूमि-पूजन
को एक साथ कराती तो धर्म-निरपेक्षता को न केवल बल मिलता बल्कि कई मंचो पर देश की मजबूत
छवि प्रस्तुत होती, साथ ही सत्ता प्राप्ति का उद्देश्य भी सफल होता | जिसका
राजनैतिक लाभ आज से कही अधिक प्राप्त होता | कम से कम उन लोगो को मौका नहीं मिलता
बोलने का जो यह कह रहे है की सरकार के द्वारा उठाया गया कदम सही नहीं है | आखिर
देश के प्रत्येक नागरिक की आवश्यकता, जरूरत को समझने का प्राथमिक दायित्व सरकार का
ही है, जिसमे धर्म और आस्था भी शामिल है |
डॉ अजय कुमार मिश्रा
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