आप सभी को मेरा नमस्कार। आज हम आपको पित्र दोष के बारे में बताने जा रहे है .यानी के पित्र दोष क्या होता है इसके क्या कारण है और इसके आपके जीवन पर क्या क्या प्रभाव हो सकते है और पित्र दोष से मुक्ति के क्या उपाय है .
शास्त्रों के अनुसार कुंडली में यदि नवं भाव ,पंचम भाव और सूर्यतथा गुरु राहू या शनि के द्वारा पीड़ित है चाहे उनकी युक्ति हो या दृष्टि तो यह पित्र दोष की अवस्था कहलाती है .पित्र दोष से परिवार की सुख शान्ति समाप्त हो जाती है .परिवार में मानसिक तथा आर्थिक समस्याएं उत्पन्न होने लगती है .शास्त्रों में इसके लिए काफी उपाय भी बताये गए है जैसे श्राद्ध पक्ष् में पितरों का श्राद्ध करना ,पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाना इत्यादि .दोस्तों यह सब हमारे शास्त्रों के हिसाब से बताये गए नियम है . अब हम लोग आज के धरातल पर आकर आज की परिस्थिति से इसका आकलन करके देखते है के आखिर ये पित्र दोष होता क्या है और इसकी वजह और मूल कारण क्या है.
आज की भागम भाग और दौडधूप भरी जिंदगी में हमारे लिए एक दूसरे के पास समय ही नहीं है यहाँ तक की आदमी सिर्फ भागे जा रहा है और सिर्फ भागे ही जा रहा है पर किसके लिए भाग रहा है यह उस भागने वाले इंसान को भी नहीं पता .आजकल की महंगाई भरी जिंदगी में पति पत्नी सबको ही आजकल नौकरी करनी पड रही है परिवारों का ताना वाना ये है के पहले के समय में एक भरा पूरा परिवार होता था जिसमे दादा दादी चाचा चची भाई भाभी सभी होते थे लेकिन आज .आज घरों में अगर होता है तो सिर्फ पति पत्नी और उनके बच्चे .आजकल की भागम भाग और दौड धूप भरी जिंदगी में हमको रिश्तों से बहुत दूर कर दिया है .
खैर चलिए अब आते है मुद्दे की बात पर .दोस्तों कुदरत का एक नियम है के जिसने लिया है उसको जिससे लिया है उससको वह वापस देना भी पड़ेगा चाहे वो किसी से ली हुई जमीद जायदाद हो या हमारे माता पिता द्वारा की हुई हमारी परवरिश . आजका युवा इन सब बातों को दकियानूसी बाते बताता है लेकिन आज की युवा पीढ़ी ही सबसे ज्यादा कर्ज के बोझ में दबी बैठी है और यह बोझ है उनके माता पिता की परवरिश का बोझ . आजके लोगों के मतानुसार अगर माता पिता ने उनको पाल पोसकर बड़ा किया है तो उन्होंने कोई एहसान नहीं किया है यह उनका फ़र्ज़ है तो फिर उन माता पिता के बच्चों का भी तो कोई फ़र्ज़ है न अपने माता पिता के प्रति अपनी पूरी जिंदगी की कमी और अपनी पूरी जिंदगी का अनमोल समय देकर माता पिता अपने बच्चों को पाल पोसकर बड़ा करते है और बच्चे,बच्चे बड़ा होकर उनके लिए क्या करते है ...........बच्चे या तो उन्हें वृधाश्रम में छोड़ आते है या फिर उन्हें किसी अकेले से कमरे में बंद करके चले जाते है या फिर BRAIN HAEMORRHAGE से पीड़ित अपने माता पिता को छत से नीचे फैंक देते है ..हम लोग इस बात का ध्यान क्यूँ नहीं रखते के आज हम जो अपने माता पिता के साथ गलत व्यवहार कर रहे है कल को हमारे खुद के बच्चे भी बड़े होकर हमारे साथ भी वही व्यवहार करेंगे क्युकी बच्चों के ऊपर किसी दूसरे का प्रभाव बाद में पड़ता है सबसे पहले बच्चे अपने माता पिता का ही अनुसरण करते है .आज हमारे घरों में जो बड़े बुजुर्ग है उन्होंने संस्कार अपने बुजुर्गों से सीखे है और उन्हें उनके संस्कारों पे गर्व है .उन्होंने ऐसे संस्कार देखे है जहाँ पर औरते अपने से बड़ों के सामने पर्दा करके रहती थी .आजकल के लोग इसे एक कुरीति और गलत प्रथा का नाम देते है लेकिन यह औरतों द्वारा अपने माता पिता समान बड़ों को दिया जाने वाला सम्मान था . लेकिन आज के समय में काफी औरतें अपने घरों में बड़े बड़े बुजुर्गों के सामने घुटनों तक के कच्छे और बदन दिखाऊ टी शर्ट पहनके घूमती है और ऐसी औरतें इसको आधुनिकता का नाम देती है जबकि यह आधुनिकता नहीं यह फूहड़ता है और फूहड़ता और नंगेपन को संस्कारों का नाम नही दिया जा सकता है .इसके लिए औरतों के साथ साथ घर के मर्द भी बराबर रूप से जिम्मेदार है जो के जोरू के पालतू जानवर की तरह उसके गुलाम बनके रहते है .आजकल लगभग हर घर में (ALMOST ७०-८०% ) घरों में पारिवारिक कलह या गंभीर बीमारियों का या बेरोजगारी या दूसरे मामले दिखाई देते है और जब हम उनका कुंडली से विश्लेषण करते है तो इसमें कुंडली में पित्र दोष बताया जाता है .इस दोष के निवारण के लिए हम तरह तरह के यत्न करते है जैसे के बड़ी पूजा पाठ या बड़ा कर्मकांड या फिर और कोई तरीका लेकिन यह सब बेकार की बातें है क्युकी जब हम हमारे जीवित बुजुर्गों का ख्याल नहीं रख सकते ,जब हम हमारे जीवित माँ बाप को अपने साथ अपने घरों पर नहीं रख सकते तो उनके गुजर जाने के बाद इस सब झूठ मूठ की पूजा पाठ और दिखावे और आडम्बर का फायदा क्या . और अगर हम इसके लिए पूजा या कोई अनुष्ठान भी करते है तो वो इसके लिए नहीं के हम अपने बुजुर्गों को सम्मान दे रहे है बल्कि इसलिए करते है ताकि हमारे जीवन में आने वाली समस्याएं ख़त्म हो जाए .मतलब यहाँ भी हम स्वार्थ देख रहे है .सनातन धर्म में गणेश जी का स्थान सर्वोपरि माना गया है क्यों क्युकी उनके लिए उनके माता पिता ही समस्त ब्रम्हांड थे . माता पिता के चरणों में ही सभी देवी देवता निवास करते है हर धर्म में इसे सर्वोपरि माना गया है .माता पिता को भी चाहिए के वो अपनी संतान को सही शिक्षा और सही संस्कार दे . आजकल का युवा अपने घरवालों के साथ रहने की अपेक्षा अपने ससुराल वालों के आचल में छुपकर रहना ज्यादा पसंद करता है .ऊपर वाले की माया भी बड़ी अजीब है उसे पता था के पहले के ज़माने में श्रवन कुमार जैसे बेटे और बहुए होती थी तो पहले बुजुर्ग १०० -१०० साल तक जीते थे लेकिन ऊपर वाले ने जब देखा के कलयुग के राक्षस जैसे बेटे और बहुए उनको मतलब निकल जाने के बाद दर दर की ठोकरे खाने के लिए छोड़ देंगी इसलिए घरों में बुजुर्ग आज वैसे भी ज्यादा समय ताज जीवित नहीं रहते है . जब तक बुजुर्ग कमाते है या जब तक उनका शरीर साथ देता है तभी तक वो जिन्दा रहते है बाद में ऊपर वाला उन्हें किसी न किसी बहाने से अपने पास बुला लेता है .है तो यह कलयुग का ही प्रभाव लेकिन करे क्या . आज हम जो वो रहे है वो हमे भविष्य में काटना ही पड़ेगा .जब हम आज काटे बो रहे है तो आगे जाकर हमे काटे ही तो मिलेंगे .मैं यहाँ आपके साथ एक सच्ची कहानी साझा करना चाहता हूँ . एक घर में एक माँ बीमार होती है .उसके बेटे को हृदाघात की वजह से अस्पताल में दाखिल करना पड़ता है . ६ दिन तक वो व्यक्ति अस्पताल में ही रहता है लेकिन जब अगले दिन जब की उसका ऑपरेशन की सारी तैयारियां चल रही तो उस रात्री को उस व्यक्ति की माँ का देहांत हो जाता है . जब उस व्यक्ति को इस बात का पता चलता है जिसका के अगले दिन ऑपरेशन होना था तो वो व्यक्ति अपना ऑपरेशन कैंसिल करके अपने माँ के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए गाव निकल जाता है .जब डॉ उससे ऑपरेशन ना करके जाने की वजह पूछते है तो वह व्यक्ति कहता है के सर हम जब छोटे छोटे थे तभी हमारे पिता का देहांत हो गया था हमारी माँ ने बहुत ही मेहनत मजदूरी करके हमे इस स्थिति में लाके खड़ा किया .अगर मैं इस समय उसके अंतिम कार्यक्रम में न जा पाऊं तो अगर मैं सही भी हो जाऊं तो इस जीवन का फिर क्या अर्थ .ज्यादा से ज्यादा मेरी मौत ही होगी न इससे ज्यादा तो और कुछ नहीं होगा न .और वो व्यक्ति नहीं माना और चला गया .माँके अंतिम सस्कार वाले दिन के अगले दिन उस व्यक्ति को हृदयाघात आया और अस्पताल ले जाते वक़्त रास्ते में ही उस व्यक्ति की मौत हो गयी .कुदरत के भी खेल देखिये के जहाँ उस व्यक्ति ने शुक्रवार को अपनी माँ का अंतिम संस्कार किया था तो रविवार के दिन उस स्थान के बिलकुल पास में ही उस व्यक्ति का अंतिम संस्कार उसके परिजनों ने किया .बाकी मेरे इस लेख का उद्देश्य आज की सामजिक व्यवस्था का सही दर्शन कराना है .
बाकी आप सब समझदार है
मेरा देश महान
जय हिन्द
हेमंत कुमार शर्मा
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